भारत के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी अपने भाई अनिल अंबानी की दिवाला हो चुकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स को खरीदने जा रहे हैं।
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भारत के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी अपने भाई अनिल अंबानी की दिवाला हो चुकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स को खरीदने जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने आरकॉम के रिजॉल्यूशन प्लान को मंजूरी दे दी है। बैंकों को उम्मीद है कि इससे उनके 23000 करोड़ रुपए वापस आ जाएंगे। मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो आरकॉम की टॉवर और फाइबर बिजनस (रिलायंस इंफ्राटेल) को खरीदने के लिए 4700 करोड़ रुपए ऑफर की है। यूवी असेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी ने आरकॉम और रिलायंस टेलकॉम के असेट के लिए 14700 करोड़ रुपए की बोली लगाई है। आरकॉम को 4300 करोड़ का बकाया इंडियन और चाइनीज क्रेडिटर्स को प्राथमिकता के आधार पर चुकाना है। मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि एसबीआई बोर्ड ने आरकॉम के रिजॉल्यूशन प्लान को मंजूरी दे दी है। रिजॉल्यूशन प्लान को लेकर कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स की बैठक का बुधवार को आखिरी दिन है। आरकॉम पर सिक्यॉर्ड कर्ज 33000 करोड़ का है और लेंडर्स ने 49000 करोड़ का दावा किया है। पिछले दिनों आरकॉम ने अपना असेट बेचकर कर्ज चुकाने की कोशिश की थी। इसके लिए अनिल अंबानी ने रिलायंस जियो से भी संपर्क किया था, जिसके मालिक मुकेश अंबानी हैं। हालांकि यह डील कई वजहों से नहीं हो पाई।" alt="" aria-hidden="true" />



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आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।
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