नोएडा।सलारपुर भंगेल व्यापार मंडल

 के सहयोग से सपा जिला प्रवक्ता राघवेंद्र दुबे ने व्यापारियों के साथ सलारपुर पुलिस चौकी के पास, एडवांट टावर सेक्टर 137 , हनुमान मूर्ति बरौला,शताब्दी विहार बरौला में जरूरतमंदों को खाने के पैकेट बांटे।इस अवसर पर जरूरतमंदों ने मदद के लिए सभी का शुक्रिया किया।इस अवसर पर सपा जिला प्रवक्ता राघवेंद्र दुबे ने कहा कि अभी नोएडा में बहुत से गरीब लोग हैं जिनके पास दो वक्त की रोटी का संकट सामने खड़ा है। ऐसे में जरूरी है कि सभी अपनी क्षमता के अनुसार असहाय लोगों की मदद करें जिससे कोई भूखा ना रहे।इस संकट की घड़ी में मानवता की सेवा से बड़ा पुण्य और कुछ नहीं होगा।व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज गोयल ने बताया कि सोमवार को 600 लोगों का खाना तैयार किया गया और जरूरतमंदों में बांटा गया। आगे भी जरूरतमंदों को खाना मुहैया कराया जाएगा। इस मुसीबत की घड़ी में हम सब अपने कर्तव्य का पालन करेंगे।इस अवसर पर व्यापारी एसोसिएशन अध्यक्ष मनोज गोयल, बाबूलाल बंसल, मुकेश बंसल, आदित्य बाजपेई, चमन जैन,नितिन गर्ग, मनोज गौतम, सौरभ, अरुण गोयल, वृजेश त्यागी, मनोज कंसल, पंकज गुप्ता, पुनीत मंगला, पंकज त्यागी, अजय कुमार, पंकज गर्ग, अनिल गोयल, मांगेराम बंसल, संजय भाटी, कुलदीप जिंदल, शिवकुमार गोयल सहित तमाम व्यापारी मौजूद रहे।


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आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।
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