प्रतापगढ़ :

 तहसील रानीगंज अंतर्गत विकास खण्ड गौरा क्षेत्र के ग्राम पंचायत नरायनपुर कला के प्राथमिक विद्यालय द्वितीय में कैरोना वायरस से बचाव हेतु ग्राम विकास अधिकारी/सचिव श्री संजय कुमार पाण्डेय, ग्राम प्रधान शेर बहादुर यादव, रोजगार सेवक गुलाब यादव, प्रधानाध्यापक बृजेश यादव एवं क्षेत्रीय लेखपाल संदीप तिवारी की उपस्थिति में ग्रा0विकास अधिकारी और ग्राम प्रधान द्वारा ग्राम पंचायत के लगभग तीन सौ लोगों को निःशुल्क  मास्क और सेनेटाइजर वितरित किया गया जिससे ग्रामीणों में खुशी का माहौल दिखा।इस दौरान अपने आवंटित ग्रा0 पंचायत में प्रयत्नशील ग्राम विकास अधिकारी श्री पाण्डेय ने ग्रामीणों को कोरोना से बचने का उपाय भी बताये। इस ग्राम पंचायत के लोग बाहर अन्य प्रदेशों में रहकर नौकरी करने वाले ग्रामीणों को ग्राम पंचायत में आने पर सर्वप्रथम चौदह दिन प्राथमिक विद्यालय में रहने हेतु दो कमरे में चारपाई,बिस्तर की व्यवस्था ग्राम प्रधान, सचिव द्वारा कर दी गयी है। ताकि बाहर से आने वाले लोग 14 दिन प्राथमिक विद्यालय में रहकर अपना चेकअप करवाने के बाद ही अपने घर में प्रवेश करें जिससे कि कोरो ना जैसी घातक बीमारी को फैलने से रोका जा सके।


Popular posts
दिल्ली हिंसाः कड़कड़डूमा कोर्ट में हुई ताहिर हुसैन की पेशी, अदालत ने 7 दिन की पुलिस हिरासत में भेजा
Image
भारत के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी अपने भाई अनिल अंबानी की दिवाला हो चुकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स को खरीदने जा रहे हैं।
Image
आज मनुष्य भौतिकतावाद की आंधी में बहकर अधिकतम धन-सम्पत्ति अर्जन कर, भोग-विलास के साधनों से क्षणिक सुखों की म्रगतृष्णा में भटक रहा है,इसलिए वह ईश्वर प्रदत्त शाश्वत शांति और आंनंद प्राप्ति से दूर ही होता जा रहा है। अज्ञानता वश इस सत्य से अनभिज्ञ है,की सुख-दुख की अनुभूति करने वाला केवल एक ही मन है। सनातन वैदिक धर्म की मान्यताओं में इसलिए सुख विशेष की अवस्था को स्वर्ग तथा दुख विशेष की अवस्था को ही नर्क कहा गया है। शांति के बिना आनंद की प्राप्ति सम्भव नही यही जगत का अटल सत्य है। सुख-दुख केवल एक मन की अवस्था का नाम है। ऐसा होना कभी सम्भव नही की संवेदनहीन निष्ठुर,कठोर ह्रदय से हम दुखों की अनुभूतियों को नजर -अंदाज कर दें और उसी ह्रदय से सुख,आनंद अनुभव कर लें इन अनुभूतियों के लिए ह्रदय का संवेदनशील होना आवश्यक है। वेद का शाब्दिक अर्थ ही ज्ञान है। वह सनातन, सार्वभौमिक होने के साथ विज्ञान न्याय,धर्म सम्मत भी है। जगत नियंता ईश्वर ही श्रष्टि का आटो माइन सिस्टम है। उसके विधान को विज्ञान की कोई भी तकनीक से बदलना सम्भव नही है। इसका सीधा सा एक अर्थ है,की दूसरे जीवों की पीड़ाओं, कष्टों, दुखों, परेशानियों को महसूस करने के प्रति,मनुष्य जितना उदासीन ,संवेदनहीन होगा,वह सुख-आंनद की अनुभूति से भी उतना ही वंचित रहेगा।दूसरे का अहित चाहने का विचार भी हमारे ही मन में उपजता है ऐसा होते ही हमारी हानि की शुरुआत हो जाती है। क्रोध करते ही हमारा बी.पी बढ़ने लगता है।निराशा,कुंठा अवसाद के विचार मन में आते ही डिप्रेशन,एन्जायटी,लो-बी.पी की समस्या घर करने लगती है।आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नवीन शोधों के निष्कर्ष भी अब यही जता रहे है नकारात्मक विचारों का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भविष्य की दुनियां में रोग- निदान में मनोचिकित्सा की बहुत बडी भूमिका उभर कर सामने आयेगी।
ग्रा0प0नरायनपुर कला में बांटे गये मास्क और सेनेटाइजर